Hindi Poem on Valor of Rani Padmini
मुझे न जाना गंगासागर मुझे न रामेश्वर, काशी तीर्थराज #चित्तौड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी..! श्याम नारायण पाण्डेय की अमर रचना #जौहर की यह पंक्तियॉं पढ़ते-गाते हुए हमारा बचपन बीता। रानी पद्मिनी का धीरोदात्त चरित्र हमारे मन में अंकित था, और थाल सजाकर उस भूमि की पूजा करने का जो भाव इस कविता में वर्णित है, वह हमारे दिलों में उमड़ता—घुमड़ता था। #पद्मिनी इस देश और भारतीय नारी-जाति के स्वाभिमान और आत्मगौरव की प्रतीक थीं। धीरे-धीरे ऐसी कविताएं और चरित्र पाठ्यक्रमों और लोकजीवन से लुप्त होते गये और इनकी जगह 'बाबा ब्लैक शीप' और 'हम्टी—डम्टी सैट ऑन ए वॉल' जैसी कविताओं ने ले ली। ख़ैर आप लोग वीर रस की यह पंक्तियाँ पढ़िये - थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात ही मतवाले ? कहाँ चले तुम राम नाम का पीताम्बर तन पर डाले ? कहाँ चले ले चन्दन अक्षत बगल दबाए मृगछाला ? कहाँ चली यह सजी आरती ? कहाँ चली जूही माला ? ले मुंजी उपवीत मेखला कहाँ चले तुम दीवाने ? जल से भरा कमंडलु लेकर किसे चले तुम नहलाने ? मौलसिरी का यह गजरा किसके गज से पावन होगा ? रोम कंटकित प्रेम - भरी इन आँखों में